आपने इस पर अवश्य ध्यान दिया होगा कि प्रकृति में , अनेक वस्तुएँ एक निश्चित प्रतिरूप (pattern) का अनुशरण करती है , जैसे कि सूरजमुखी के फूल की पंखुड़ियां , मधु-कोष (मधु-छत्ते) मैं छिद्र , एक भुट्टे पर दाने और किसी सीढ़ी के डंडे।
उपरोक्त उदाहरणों में , हम कुछ प्रतिरूप देखते है। कुछ में , हम देखते है कि उत्तरोत्तर दर अपने से पहले पद में एक स्थिर संख्या जोड़ने से प्राप्त होते है ; कुछ में ये पद अपने से पहले पद को एक निश्चित संख्या से गुणा करके प्राप्त होते है तथा कुछ अन्य में हम यह देखते है कि ये क्रमागत संख्याओं के वर्ग है, इत्यदि।
इसमे हम एक प्रतिरूप का (Arithmetic progression in Hindi) अध्ययन करेंगे। जिसमे उत्तरोत्तर पद अपने से पहले पदों में एक निश्चित संख्या जोड़ने पर प्राप्त किये जाते है। हम यह भी देखेंगे कि इनके nवें पद और n क्रमागत पदों के योग किस प्रकार ज्ञात किये जाते है तथा इस ज्ञान का प्रयोग कुछ दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने में करेंगे।
समांतर श्रेढियाँ (Arithmetic progression A.P):
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मान लीजिये कोई एक संख्याओं के अनुक्रम है-
1, 2 , 3 , 4 , . . . . . . . .
इस अनुक्रम (sequence) की प्रत्येक संख्या एक पद (term) कहलाती हैं।
इसमे प्रत्येक पद अपने पिछले पद से 1 अधिक हैं।
इस अनुक्रम में पहले पदों में एक निश्चित संख्या जोड़कर प्राप्त किया जाता है। संख्याओं की ऐसी अनुक्रम को एक समांतर श्रेढी (A.P) कहा जाता हैं।
अतः एक समांतर श्रेढी संख्याओं की एक ऐसी सूची है जिसमे प्रत्येक पद (पहले पद के अतिरिक्त्त) अपने पद में एक निश्चित संख्या जोड़ने पर प्राप्त होता हैं।
यह निश्चित संख्या A.P का सार्व अंतर (common difference) कहलाती है, ध्यान रहे यह धनात्मक , ऋणात्मक या शून्य (negative , positive or zero) हो सकता है।
किसी भी A.P के पहले पद को a1 , दूसरे पद को a2 , . . . . .nवें पद An और सार्व अंतर (common difference) को d से दिखाया जाता हैं।
तब A.P , a1, a2, a3, . . . . . . , An बन जाती है।
यदि हमें किसी भी अनुक्रम कि कोई भी पद की संख्या ज्ञात करनी हो तो उसके लिए एक सूत्र की आवश्यकता होती है-
An = a + (n-1)× d
यहाँ,
An – nवें पद की संख्या या अंतिम पद
a – पहले पद की संख्या
n – संख्या का पद
d – सार्व अंतर (common difference)
इसमे d का मान d = a2-a1 इस तरह ज्ञात किया जा सकता है।
आइए एक उदाहरण देख लेते हैं-
4 , 10 , 16 , 22 , . . . . .
हमे इसका अंतिम पद ज्ञात करना है तो ,
a1 = a = 4
a2 = 10
d = a2 – a1 = 10 – 4 = 6
An = a + (n -1)d
An = 4 + (n -1)6
= 4 + 6n – 6 = 6n – 2
An = 6n -2
अब यहाँ n का मान कुछ भी हो सकता हैं।
मान लीजिए यदि हमें इसी अनुक्रम की 30वें पद की संख्या ज्ञात करनी हो तो n का मान (n = 30) ले लेंगे –
A30 = a + (30 – 1) d
= a + 29d
= 4 + 29×6
= 4 + 174
A30 = 178
तो 30वें पद का मान यह आ जाएगा।
A.P के प्रथम n पदों का योग (sum of first n terms of an A.P) :
आइए हम इसे एक वास्तविक जीवन की घटना से समझते हैं।
मान लीजिए कोई एक व्यक्ति है , जो पहले माह की 1 तारीख को अपने बैंक के खाते में ₹500 और दूसरे माह में ₹600 और तीसरे माह में ₹700 और इसी अनुक्रम में जमा करता है। उसकी उम्र अभी 25 वर्ष है और वह इसी अनुक्रम में अपने पैसे अपनी 48 वर्ष की उम्र तक करता है। तो चाहे तो हम इसे A.P में भी लिख सकते हैं कुछ इस तरह –
500 , 600 , 700 , . . . . . .
तो यदि हमें ज्ञात करना हो कि उसे 48 वर्ष की आयु में कितनी धनराशि प्राप्त होगी तो उसके लिए हमें इस A.P के n पदों का योग करना होगा। परंतु यदि हम सूत्र का इस्तेमाल करेंगे तो आसानी से और कम समय में ज्ञात कर पाएंगे।
तो इसके लिए सूत्र है यह –
Sn = n/2 [2a + (n – 1) d]
यहाँ ,
Sn – nवें पद का योग
n – पद की संख्या
a – पहला पद
d – सार्व अंतर (common difference)
तो चलिए ज्ञात करते हैं –
यहाँ,
a1 = 500 , a2 = 600
a3 = 700
d = a2 – a1 = 600 – 500 = 100
d = a3 – a2 = 700 – 600 = 100
यहां d पूरी सूची के लिए समांतर है यानी यह एक A.P बना रहा है तो अब,
a = 500
d = 100
n = 276 ( उसने 25 वर्ष की आयु से 48 वर्ष की आयु तक जमा की यानी 23 वर्ष के लिए और वह हर माह जमा करता था यानी (23×12) माह)
Sn = n/2 [2a + (n – 1) d]
= 276/2 [2×500 + (276 -1) × 100]
= 138 (100 + 275×100)
= 138 (100 + 27500)
= 138×27600
Sn = 3,808,800
तो उसे 48 वर्ष की आयु में 3,808,800 ₹ की धनराशि प्राप्त होगी ध्यान रहे इसमें हमने कोई बैंक का ब्याज (simple interest /compound interest) नहीं लगाया है।
तो इस तरह से हम किसी भी अनुक्रम की nवें पद का योग कर सकते हैं।
यदि हमें किसी अनुक्रम का पहला पद और अंतिम पद मालूम हो तो हम इस सूत्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं –
Sn = n/2 (a + An)
यहाँ,
Sn – nवें पद का योग
n – पद
a – पहला पद
An – अंतिम पद
अतः किसी A.P के प्रथम n पदों का योग Sn निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होता हैं ;
Sn = n/2 [2a + (n -1) d ]
अथार्त,
Sn = n/2 (a + l )
हम यहाँ An जगह l (last term) भी लिख सकते हैं।
NOTE: प्रथम n धन पुर्णाको का योग सूत्र , Sn = n(n + 1)/2 से प्राप्त होता हैं।
The sum of first n positive integers is given by –
Sn = n(n+1)/2
IMPORTANT : यदि a , b , c A.P में है तब b = (a + c)/2 और b , a तथा c का समांतर माध्य (Arithmetic mean) कहलाता है।
इसे ऐसे derive किया गया है,
a , b , c
a1 = a a2 = b a3 = c
d1 = a2 – a1 = b – a
d2 = a3 – a2 = c – b
d1 = de
b – a = c – b
b + b = c + a
2b = a + c
b = (a + c)/2
Also Read : Integers in Hindi – पूर्णांक संख्या क्या होती है
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